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निबन्ध

निबन्ध

निबन्ध (Essay) गद्य लेखन की एक विधा है। लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में संदर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है।
लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत में भी निबंध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबंध संस्कृत के निबंधों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है।

इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबंध की विधा का संबंध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबंध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है।

निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा है-

"निबंध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।"
इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबंध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतंत्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है।


1 निबंध की विशेषता
2 हिन्दी साहित्य में निबन्ध
3 प्रमुख हिंदी निबंधकार
4 इन्हें भी देखें
5 बाहरी कड़ियाँ

निबंध की विशेषता-

सारी दुनिया की भाषाओं में निबंध को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। आधुनिक युग में ही मध्ययुगीन धार्मिक, सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति का द्वार दिखाई पड़ा है। इस मुक्ति से निबंध का गहरा संबंध है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार-

"नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है।
इस प्रकार निबंध में निबंधकार की स्वच्छंदता का विशेष महत्त्व है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है:

" निबंध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।
इसका तात्पर्य यह है कि निबंध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबंधकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबंध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबंध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है।

“हिन्दी साहित्य कोश” के अनुसार:

"लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबंध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबंध-लेखक पाठकों को अपने पांडित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता।
इस प्रकार निबंध के दो विशेष गुण हैं-

1. व्यक्तित्व की अभिव्‍यक्ति

2. सहभागिता का आत्मीय या अनौपचारिक स्तर

निबंध का आरंभ कैसे हो, बीच में क्या हो और अंत किस प्रकार किया जाए, ऐसे किसी निर्देश और नियम को मानने के लिए निबंधकार बाध्य नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि निबंध एक उच्छृंखल रचना है और निबंधकार एक उच्छृंखल व्यक्ति। निबंधकार अपनी प्रेरणा और विषय वस्तु की संभावनाओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व का प्रकाशन और रचना का संगठन करता है। इसी कारण निबंध में शैली का विशेष महत्त्व है।

हिन्दी साहित्य में निबन्ध
हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग में भारतेन्दु और उनके सहयोगियों से निबंध लिखने की परम्परा का आरंभ होता है। निबंध ही नहीं, गद्य की कई विधाओं का प्रचलन भारतेन्दु से होता है। यह इस बात का प्रमाण है कि गद्य और उसकी विधाएँ आधुनिक मनुष्य के स्वाधीन व्यक्तित्व के अधिक अनुकूल हैं। मोटे रूप में स्वाधीनता आधुनिक मनुष्य का केन्द्रीय भाव है। इस भाव के कारण परम्परा की रूढ़ियाँ दिखाई पड़ती हैं। सामयिक परिस्थितियों का दबाव अनुभव होता है। भविष्य की संभावनाएँ खुलती जान पड़ती हैं। इसी को इतिहास-बोध कहा जाता है। भारतेन्दु युग का साहित्य इस इतिहास-बोध के कारण आधुनिक माना जाता है।

प्रमुख हिंदी निबंधकार

भारतेंदु
प्रतापनारायण मिश्र
बालकृष्‍ण भट्ट
बालमुकुंद गुप्‍त
सरदार पूर्णसिंह
महावीर प्रसाद द्विवेदी
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
हजारी प्रसाद द्विवेदी
रामचंद्र शुक्‍ल
महादेवी वर्मा
कुबेरनाथ राय
विद्यानिवास मिश्र
नंददुलारे वाजपेयी
महादेवी वर्मा और रेखाचित्र - गौरा और सोना के संदर्भ में - रेखाचित्र निबंध की एक नवीन विधा है।

कैसे करें निबंध लिखने की तैयारी


पहला चरण : सबसे पहले जिस विषय को आपने पसंद किया है उस पर अपने विचारों को दिमाग में लाएं, उस पर खूब सोचें। अपने दोस्तों से उस विषय पर चर्चा करें। चर्चा खुले दिमाग से हो मगर याद रहे कि वह बहस ना बनें। आप उस विषय पर जितना जानते हैं उसे एक कागज पर उतार लें। इसका फायदा यह होगा कि दिमाग में एकत्र जानकारी कागज पर आने से दिमाग में अन्य जानकारी के लिए जगह बनेगी।

जैसे किसी कागज पर अगर कुछ लिखा है तो उस पर और अधिक नहीं लिखा जा सकता । कागज जब खाली होगा तभी उस पर लिखने की संभावना होगी। उस‍ी तरह दिमाग को भी नई जानकारी के लिए जगह चाहिए। अगर पहले से वहां कुछ जमा है तो नई जानकारी उसकें दर्ज नहीं हो पाएगी। जब आप कागज पर अपने विचार लिख लें तब नई किताबों, अखबारों और इंटरनेट से और अधिक जानकारी एकत्र करें।


दूसरा चरण : सारी जानकारी एकत्र हो जाए तब उसे क्रमवार प्रस्तुत करना जरूरी है। जानकारी होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है जानकारी की आकर्षक प्रस्तुति। किसी बात को कहने का सुंदर अंदाज ही आपको सबसे अलग और खास बनाता है। निबंध का एक स्वरूप, ढांचा या सरल शब्दों में कहें तो खाका तैयार करें। सबसे पहले क्या आएगा, उसके बाद और बीच में क्या आएगा और निबंध का अंत कैसे होगा।

तीसरा चरण: निबंध के लिए विषय को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है। सबसे पहले विषय परिचय, जिसे भूमिका या प्रस्तावना कहा जाता है। उसके बाद विषय विस्तार या विषय का विकास, महत्व, विषय से संबंधित आवश्यक पहलू, आंकड़े, सूचना आदि इसमें शामिल होंगे। उसके पक्ष और विपक्ष में विचार, ‍निबंध के केन्द्र में कोई वस्तु है तो उपयोगिता, लाभ-हानि, फायदे-नुकसान आदि लिखे जा सकते हैं।

अगर निबंध किसी महापुरुष पर लिखा जा रहा है उनके बचपन, स्वभाव, महान कार्य, देश व समाज को योगदान, उनके विचार, प्रासं‍गिकता और अंत में उनके प्रति आपके विचार दिए जा सकते हैं। निबंध के अंत को निष्कर्ष या उपसंहार कहते हैं। यहां आकर आप विषय को इस तरह समेटते हैं कि वह संपूर्ण लगे।


सबसे अहम शुरुआत है: कहते हैं 'फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन'। पहली बार जो प्रभाव पड़ता है वह आखिर तक रहता है। आपको निबंध लिखना है तो महापुरुषों के अनमोल वचन से लेकर कविताएं, शेरो-शायरी, सूक्तियां, चुटकुले, प्रेरक प्रसंग, नवीनतम आंकड़े कंठस्थ होने चाहिए। अपनी बात को कहने का आकर्षक अंदाज अक्सर परीक्षक या निर्णायक को लुभाता है।

विषय से संबंधित सारगर्भित कहावतों या मुहावरों से भी निबंध का आरंभ किया जा सकता है। विषय को क्रमवार विस्तार देने में ना तो जल्दबाजी करें ना ही देर। निबंध के हर भाग में पर्याप्त जानकारी दें। हर अगला पैरा एक नई जानकारी लेकर आएगा तो पढ़ने वाले की उसमें दिलचस्पी बनी रहेगी।

अनावश्यक विस्तार जहां पढ़ने वाले को चिढ़ा सकता है वहीं अति संक्षेप आपकी अल्प जानकारी का संदेश देगा। अत: शब्द सीमा का विशेष ध्यान रखें। दी गई शब्द सीमा को तोड़ना भी निबंध लेखन की दृष्टि से गलत है। अगर शब्दसीमा ना दी गई हो तो हर प्वाइंट में 40 से 60 शब्दों तक अपनी बात कह देनी चाहिए।

अंत भला तो सब भला: जिस तरह आरंभ महत्वपूर्ण है उसी तरह अंत में कहीं गई कोई चुटीली या रोचक बात का भी खासा असर होता है। विषय से संबं‍धित शायरी या कविता हो तो क्या बात है। अंत यानी निष्कर्ष/उपसंहार में प्रभावशाली बात कहना अनिवार्य है। सारे निबंध का सार उसमें आ जाना चाहिए।

प्रभावी निबंध ऐसे लिखो=
एक अच्छे निबंध में कौन, क्या, कैसे, कब, कहां और क्यों के जवाब शामिल होते हैं। यदि इनके उत्तर अपने निबंध में देते हो तो निबंध सुंदर और सार्थक बन जाएगा। कैसे लिखोगे इसे, बता रहे हैं कौशलेंद्र प्रपन्न

म सभी निबंध तो लिखते ही होगे। परीक्षा या कक्षा में मैडम या सर तुम्हें निबंध लिखने के लिए बोलते होंगे। कैसे और क्या लिखते हो निबंध में? कितने अंक आते हैं निबंध लेखन में? अगर चाहते हो कि अच्छा निबंध लिखो और अच्छे अंक आएं तो आओ हम यहां ऐसे कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर नजर डालते हैं। अगर तुम इन बातों का ध्यान रखोगे तो अच्छे नंबर आएंगे।
एक अच्छे निबंध में क्या चीजें होती हैं? एक अच्छे निबंध में कौन, क्या, कैसे, कब, कहां और क्यों के जवाब शामिल होते हैं। यदि इन ‘क’ के उत्तर अपने निबंध में देते हो तो निबंध तो सुंदर और सार्थक होगा ही, साथ ही वह बेहतर निबंध माना जाएगा।

कैसे निबंध लिखोगे?
अगर तुम्हें स्वतंत्रता दिवस पर निबंध लिखना है तो इस निबंध के साथ हम इस तरह से आरंभ करेंगे। स्वतंत्रता दिवस क्या है? क्यों मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस? कैसे मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस? कब मनाते हैं? कहां मनाते हैं? कौन मनाता है इसे? निश्चित मानो यदि तुम इन छह ‘क’ का जवाब पांच-पांच लाइनों में दे देते हो तो कल्पना कर सकते हो कि तुमने छह गुणा पांच यानी तीस पंक्ति का निबंध लिख दिया।

एक अच्छे निबंध में यदि इन ‘क’ का जवाब देते हो तो तुम्हारे टीचर को वह निबंध पसंद आएगा। इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हारे निबंध से टीचर प्रभावित भी होंगे। तुम्हारी तरह निबंध लिखने के लिए और बच्चों को भी प्रेरित किया जाएगा।
अब यदि कक्षा में या परीक्षा में निबंध लिखने को आए तो इस तरह लिख सकते हो। घर पर इस तरह से और अन्य विषय पर भी निबंध लिखकर अभ्यास कर सकते हो। इससे तुम्हारा अभ्यास बढ़ेगा और तुम अच्छे निबंध लेखक बन सकते हो। एक अच्छा और सफल निबंध लेखक बनने के लिए अभी से ही अभ्यास करना शुरू कर दीजिए।
क्या आप जानते हैं निबंध क्या होता है? नि और बंध शब्द से मिलकर बना है निबंध यानी जिसे बांधा ना जा सके वही निबंध है। जब भी स्कूलों में प्रतियोगिताएं या परीक्षा होती है निबंध सबसे पहले आता है। कई बार हमें समझ में नहीं आता है कि निबंध कैसे लिखें? हम जानकारी तो एकत्र कर लेते है मगर उसे कैसे व्यवस्थित रूप से सजाएं यह समझ में नहीं आता है।

विषय पर सब कुछ आते हुए भी कई बार बहुत सारी जानकारी लिखने की जल्दबाजी में हम अपनी बात को स्पष्टता से नहीं रख पाते हैं और मेहनत करने के बाद भी हमारा प्रतियोगिता में स्थान नहीं आ पाता है। इन छोटी बातों के कारण परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आ पाते हैं। पर निराश होने की आवश्यकता नहीं हैं, हम आपको बताते हैं कि निबंध कैसे लिखा जाता है और एक अच्छे निंबध लेखन के लिए किन बातों का ख्याल रखा जाना जरूरी है।

अधिकतर निबंध लेखन शुरूआत होती है पांचवी के बाद। निबंध लेखन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है; पहला पांचवी से आठवी तक और दूसरा आठवीं से दसवी तक। तो अगर आप पांचवी से लेकर आठवीं तक के विद्यार्थी हैं तो सबसे पहले उन विषयों की सूची बना लें जिन पर आपको निबंध लिखने के लिए आ सकता है।





'निबंध' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- नि+बंध।

इसका अर्थ है भली प्रकार से बंधी हुई रचना।

अर्थात वह रचना जो विचारपूर्वक, क्रमबद्ध रूप से लिखी गई हो।

परिभाषा - 'निबंध वह गद्य रचना है, जो किसी विषय पर क्रमबद्ध रूप से लिखी गई हो।'

निबंध के विषय

जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल विचार-विमर्श के लिए हमें श्रेष्ठ निबंध लेखन की आवश्वयकता होती है। निबंध‍ किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। आज सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक विषयों पर निबंध लिखे जा रहे हैं। संसार का हर विषय, हर वस्तु, व्यक्ति एक निबंध का केंद्र हो सकता है।

अच्छा निबंध कैसे लिखें?

अच्‍छा निबंध लिखने के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-

1. निबंध लेखन के पूर्व विषय पर विचार कर-

(अ) निबंध को शीर्षकों (पॉइंट्‍स) में बांट लेना चाहिए।
(ब) इन शीर्षकों को उपशीर्षकों में बांट लेना चाहिए।
(स) अधिक नहीं तो आरंभ, मध्य उपसंहार पर्याप्त है।

2. भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।

3. विचारों को क्रमबद्ध रूप से स्पष्ट करना चाहिए।

4. विचारों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।

5. लिखने के बाद उसे पढ़िए, उसमें आवश्यक सुधार कीजिए।

6. भाषा संबंधी त्रुटियां दूर कीजिए।

7. यदि समय हो तो उसे दुबारा सुंदर सुवाच्य अक्षरों में लिखिए।

8. भाषा संबंधी त्रुटियां दूर कीजिए।

9. यदि समय हो तो उसे दुबारा सुंदर सुवाच्य अक्षरों में लिखिए।

10. कोई उपयुक्त कथन याद हो तो उसे यथास्थान जोड़िए।

याद रखिए

1. निबंध परीक्षा कॉपी के दो या तीन पेज से अधिक न हो।

2. पॉइंट वाइज अर्थात शीर्षकों में लिखिए।

3. शीर्षकों को रेखांकित (अंडरलाइन) करना न भूलिए।
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दीपावली :

प्रस्तावना-

प्रत्येक समाज त्योहारों के माध्यम से अपनी खुशी एक साथ प्रकट करता है। हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली हैं। इनमें से दीपावली सबसे प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार का ध्यान आते ही मन-मयूर नाच उठता है। यह त्योहार दीपों का पर्व होने से हम सभी का मन आलोकित करता है।


दीपावली कब-क्यों मनाई जाती है-

यह त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात जगमग असंख्य दीपों से जगमगाने लगती है। कहते हैं भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, इस खुशी में अयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध भी इसी दिन किया था। यह दिन भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी है। इन सभी कारणों से हम दीपावली का त्योहार मनाते हैं।

दीपोत्सव मनाने की तैयारियां-

यह त्योहार लगभग सभी धर्म के लोग मनाते हैं। इस त्योहार के आने के कई दिन पहले से ही घरों की लिपाई-पुताई, सजावट प्रारंभ हो जाती है। नए कपड़े बनवाए जाते हैं, मिठाइयां बनाई जाती हैं। वर्षा के बाद की गंदगी भव्य आकर्षण, सफाई और स्वच्‍छता में बदल जाती है।

उत्सव-

यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतेरस से भाई दूज तक यह त्योहार चलता है। धनतेरस के दिन व्यापार अपने बहीखाते नए बनाते हैं। अगले दिन नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अच्‍छा माना जाता है। अमावस्या के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। फुलझड़ी, फटाखे छोड़े जाते हैं। असंख्य दीपों की रंग-बिरंगी रोशनियां मन को मोह लेती हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है।

अगला दिन परस्पर भेंट का दिन होता है। एक-दूसरे के गले लगकर दीपावली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। गृहिणियां मेहमानों का स्वागत करती हैं। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद भूलकर आपस में मिल-जुलकर यह त्योहार मनाते हैं।

उपसंहार-

दीपावली का त्योहार सभी के जीवन को खुशी प्रदान करता है। नया जीवन जीने का उत्साह प्रदान करता है। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं, जो घर व समाज के लिए बड़ी बुरी बात है। हमें इस बुराई से बचना चाहिए। पटाखे सावधानीपूर्वक छोड़ने चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य एवं व्यवहार से किसी को भी दुख न पहुंचे, तभी दीपावली का त्योहार मनाना सार्थक होगा।
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महात्मा गांधी :

आदर्श हिन्दी निबंध=
'दे दी हमें आजादी, बिना खड्‍ग बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।'

प्रस्तावना- हमारा देश महान स्त्रियों और पुरुषों का देश है जिन्होंने देश के लिए ऐसे आदर्श कार्य किए हैं जिन्हें भारतवासी सदा याद रखेंगे। कई महापुरुषों ने हमारी आजादी की लड़ाई में अपना तन-मन-धन परिवार सब कुछ अर्पण कर दिया। ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे महात्मा गांधी। महात्मा गांधी युग पुरुष थे जिनके प्रति पूरा विश्व आदर की भावना रखता था।



ब‍चपन एवं शिक्षा- इस महापुरुष का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 को गुजरात में पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। आपका पूरा नाम मोहनदास था। आपके पिता कर्मचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। माता पुतलीबाई धार्मिक स्वभाव वाली अत्यंत सरल महिला थी। मोहनदास के व्यक्तित्व पर माता के चरित्र की छाप स्पष्ट दिखाई दी।

प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में पूर्ण करने के पश्चात राजकोट से मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर आप वकालत करने इंग्लैंड चले गए। वकालत करके लौटने पर वकालत प्रारंभ की। एक मुकदमे के दौरान आपको दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां भारतीयों की दुर्दशा देख बड़े दुखी हुए। उनमें राष्ट्रीय भावना जागी और वे भारतवासियों की सेवा में जुट गए। अंग्रेजों की कुटिल नीति तथा अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किए। असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया।

सिद्धांत- गांधीजी ने अंग्रेजों से विरोध को प्रकट करने के लिए सत्याग्रह को अपना प्रमुख अस्त्र बनाया। सत्य, अहिंसारूपी अस्त्रों के सामने अंग्रेजों की कुटिल नीति तथा अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किए। असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी के उच्चादर्शों एवं सत्य के सम्मुख उन्हें झुकना पड़ा और वे हमारा देश छोड़ चले गए। इस प्रकार हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ।

अन्य कार्य- गांधीजी ने अछूतों का उद्धार किया। उन्हें 'हरिजन' नाम दिया। भाषा, जाति और धर्म संबंधी भेदों को समाप्त करने का आजीवन प्रयत्न किया। स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर जोर दिया। सूत कातने, सब धर्मों को आदर से देखने और सत्य, अहिंसा को जीवन में अपनाने की शिक्षा दी। गांधीजी ने विश्व को शांति का संदेश दिया।

उपसंहार- गांधीजी ने प्रेम और भाईचारे की भावना से भारत की जनता के हृदय पर राज किया। वे देश में रामराज्य स्थापित करना चाहते थे। भारत की आजादी के पश्चात देश दो टुकड़ों में विभाजित हुआ- भारत-पाकिस्तान। इस बात का आपको बहुत दुख पहुंचा। हमारा दुर्भाग्य था कि इस नेता का मार्गदर्शन हम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिक समय तक नहीं पा सके और नाथूराम गोड़से नामक व्यक्ति की गोली से 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की जीवनलीला समाप्त हो गई। एक भविष्यदृष्टा, युगदृष्टा हमारे बीच से चला गया। आज गांधीजी हमारे बीच नहीं हैं, किंतु उनके आदर्श सिद्धांत हमें सदैव याद रहेंगे। उनका नाम अमर रहेगा।
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शहीद भगत सिंह=

जीवन परिचय

सरदार भगतसिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) के एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था,जिसका अनुकूल प्रभाव उन पर पड़ा था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता 'सरदार किशन सिंह' एवं उनके दो चाचा 'अजीतसिंह' तथा 'स्वर्णसिंह'अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण जेल में बंद थे। जिस दिन भगतसिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया। इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगतसिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गई थी।

भगतसिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला'रखा था। जिसका मतलब होता है 'अच्छे भाग्य वाला'। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बंधन में बांधने की तैयारियां होने लगी तो वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए। फिर देश की आजादी के संघर्ष में ऐसे रमें कि पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया। भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया,वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा।
भगतसिंह को हिन्दी,उर्दू,पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। जेल के दिनों में उनके लिखे खतों व लेखों से उनके विचारों का अंदाजा लगता है। उन्होंने भारतीय समाज में भाषा,जाति और धर्म के कारण आई दूरियों पर दुख व्यक्त किया था।
उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के प्रहार को भी उसी सख्ती से सोचा जितना कि किसी अंग्रेज के द्वारा किए गए अत्याचार को। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उग्र हो जाएगी,लेकिन जबतक वह जिंदा रहेंगे ऐसा नहीं हो पाएगा। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।

अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का उद्देश्य सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
इसके बाद भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा। इस कार्रवाई में क्रां‍तिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी सहायता की। इसके बाद भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़ दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेम्बली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके। बम फेंकने के बाद वहीं पर उन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।

इसके बाद'लाहौर षडयंत्र' के इस मुकदमें में भगतसिंह को और उनके दो अन्य साथियों,राजगुरु तथा सुखदेव को 23 मार्च,1931 को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया। यह माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी,लेकिन लोगों के भय से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया। यह एक संयोग ही था कि जब उन्हें फांसी दी गई और उन्होंने संसार से विदा ली,उस वक्त उनकी उम्र 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन थी और दिन भी था 23 मार्च। अपने फांसी से पहले भगत सिंह ने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा था,जिसमें कहा था कि उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबंदी समझा जाए तथा फांसी देने के बजाए गोली से उड़ा दिया जाए,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

भगतसिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। उनके जीवन पर आधारित कई हिन्दी फिल्में भी बनी हैं जिनमें- द लीजेंड ऑफ भगत सिंह,शहीद,शहीद भगत सिंह आदि। आज भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। भारत और पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी।
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क्रिसमस=


क्रिश्चियन समुदाय के लोग हर साल 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्योहार मनाते हैं। क्रिसमस का त्योहार ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। क्रिसमस क्रिश्चियन समुदाय का सबसे बड़ा और खुशी का त्योहार है, इस कारण इसे बड़ा दिन भी कहा जाता है।

* क्रिसमस के 15 दिन पहले से ही मसीह समाज के लोग इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं।

* घरों की सफाई की जाती है, नए कपड़े खरीदे जाते हैं, विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।
* इस दिन के लिए विशेष रूप से चर्चों को सजाया जाता है।

* क्रिसमस के कुछ दिन पहले से ही चर्च में विभिन्न कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं जो न्यू ईयर तक चलते रहते हैं।
* इन कार्यक्रमों में प्रभु यीशु मसीह की जन्म गाथा को नाटक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। मसीह गीतों की अंताक्षरी खेली जाती है, विभिन्न प्रकार के गेम्स खेले जाते है, प्रार्थनाएं की जाती हैं आदि।

* कई जगह क्रिसमस के दिन मसीह समाज द्वारा जुलूस निकाला जाता है। जिसमें प्रभु यीशु मसीह की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं।
* कई जगह क्रिसमस की पूर्व रात्रि, गि‍‍‍‍रिजाघरों में रात्रिकालीन प्रार्थना सभा की जाती है जो रात के 12 बजे तक चलती है। ठीक 12 बजे लोग अपने प्रियजनों को क्रिसमस की बधाइयां देते हैं और खुशियां मनाते हैं।

* इस दिन अन्य धर्मों के लोग भी चर्च में मोमबत्तियां जलाकर प्रार्थना करते हैं।

* क्रिसमस की सुबह गि‍‍‍‍रिजाघरों में‍ विशेष प्रार्थना सभा होती है।
* क्रिसमस का विशेष व्यंजन केक है, केक बिना क्रिसमस अधूरा होता है।

* इस दिन लोग चर्च और अपने घरों में क्रिसमस ट्री सजाते हैं।

* सांताक्लॉज बच्चों को चॉकलेट्स और गिफ्ट्स देते हैं।
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भारतीय स्वतंत्रता दिवस=

यह हृदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं

वास्तव में माता और मातृभूमि के मोह से मनुष्य मृत्यु तक मुक्त नहीं होता। इन दोनों के इतने उपकार होते हैं कि मानव उनसे आजीवन उऋण नहीं हो पाता मातृभूमि की मान रक्षा के लिए अपने को बलिदान करने में जो परम आनंद प्राप्त होता है। देशहित के लिए अपना सर्वस्त्र बलिदान करने में जो सुख-शांति मिलती है, उसका मूल्य कोई सच्चा देश भक्त ही जान सकता है।

देश सेवा और परोपकार ही उसका धर्म होता है। देशवासियों के सुख-दुख में ही उसका सुख-दुख निहित होता है। उसकी अंतरात्मा स्वार्थरहित होती है। देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए स्वदेश प्रेम परम आवश्यक है। जिस देश के निवासी अपने देश के कल्याण में अपना कल्याण, अपने देश के अभ्युदय में अपना उदय समझना चाहिए।
भारत के बढ़ते कदम भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर

भारत निरंतर प्रगति के पथ पर विकसित होता चला जा रहा है। आजाद भारत ने अपनी एक लंबी यात्रा पूरी कर ली है। अब उसकी योजनाओं का सुलझना शुरू हो गया है। अपनी उपलब्धियों को हम अक्सर कमतर आंका करते हैं। गर्व की अनूभूति में वह ताकत है जो आम जन में आशाओं और उम्मीदों का नया संचार करके उन्हें सामान्य से असामान्य ऊंचाइयों तक पहुंचा देती है।

गर्व की यह अनुभूति अवसाद और न उम्मीदी के सबसे हताशा भरे दौर में भी एक अरब लोगों के आत्मबल को ऊंचा उठा सकती है। स्वतंत्र भारत की प्रगति पर गर्व करने लायक।
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विद्यालय का वार्षिकोत्सव=

प्रस्तावना :

प्रत्येक विद्यालय में अनेक अवसरों पर मूलत: सभी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस के अलावा विद्यालयों में गुरु-पूर्णिमा, बाल दिवस, शिक्षक दिवस, गांधी जयंती आदि पर भी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, किंतु वर्ष में लगभग सत्र की समाप्ति के दौरान एक विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसे वार्षिक उत्सव कहते हैं।
वार्षिकोत्सव किसलिए :

विद्यालयों में मनाए जाने वाले वार्षिकोत्सव के कई प्रयोजन माने गए है। अपनी शिक्षा पूरी कर चुके छात्रों को प्रमाण-पत्र आदि देकर विदा करना तो हर विद्यालय का प्रायोजन होता है। इसके अलावा वर्ष भर का लेखा-जोखा व उपलब्धियों पर सामूहिक समारोह करना भी होता है। इन सब के साथ वार्षिकोत्सव के अवसर पर विशेष रूचि तथा कलात्मक प्रतिभा रखने वालों को भी अपनी कलाएं और रूचियां प्रदर्शित करने का अवसर भी प्राप्त होता है। इस बहाने बच्चों के अभिभावक भी विद्यालय आकर बच्चों की प्रगति देख सकते हैं।
वार्षिकोत्सव की तैयारी :

हर विद्यालय का वार्षिकोत्सव मनाने का समय और दिनांक निश्चित रहती है। जब वार्षिकोत्सव का समय पास आ जाता है तो लगभग एक माह पूर्व विद्यालय के छात्र-छात्राओं को इसमें भाग लेना होता है। यह कार्यक्रम अध्यापकों की देखरेख में किया जाता है। इन सभी कार्यक्रमों के चलते भी विद्यालय अपनी नियमित कक्षाओं में बाधा नहीं पड़ने देता है।
कैसे मनाया जाता है :

विद्यालय का वार्षिकोत्सव हर वर्ष बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन की अध्यक्षता के लिए विद्यालय के प्राचार्य तथा शिक्षा जगत से जुड़ी कई विद्वान हस्तियों को बुलाया जाता है। उत्सव के स्थल को बड़ी ही तन्मयता से सभी छात्र-छात्राएं सजाते हैं। नाटक, नृत्य, निबंध, वाद-विवाद, रंगोली, कविता, चित्रकला, पोस्टर प्रतियोगिता, स्लोगन आदि कई दिलचस्प और रचनात्मक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। इसके बाद छोटे-छोटे दलों में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है।

समारोह के अंत में पुरस्कार मुख्य अतिथि द्वारा वितरित किए जाते हैं।

उपसंहार :

वास्तव में प्रत्येक विद्यालय के वार्षिकोत्सव का उद्देश्य मनोरंजन ही नहीं बल्कि सभी छात्र-छात्राओं की रूचियों और प्रगति का लेखा-जोखा जानना होता है। इस आयोजन से सभी विद्यार्थियों को नए उत्साह और प्रेरणा की अनुभूति होती है।
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'हिन्दी दिवस'

पर कैसे लिखें निबंध=
हिन्दी के बढ़ते कदम- कल से आज तक

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है हिन्दी। चीनी भाषा के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत और अन्य देशों में 60 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते,पढ़ते और लिखते हैं।
इतना ही नहीं फ़िजी,मॉरीशस,गुयाना,सूरीनाम जैसे दूसरे देशों की अधिकतर जनता हिन्दी बोलती है। भारत से सटे नेपाल की भी कुछ जनता हिन्दी बोलती है। आज हिन्दी राजभाषा,सम्पर्क भाषा,जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।

हिन्दी भाषा प्रेम,मिलन और सौहार्द की भाषा है। यह मुख्यरूप से आर्यों और पारसियों की देन है। हिन्दी के ज्यादातर शब्द संस्कृत,अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। हिन्दी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्रकृति से उदार ग्रहणशील,सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है हिन्दी।
यह विश्व की एक प्राचीन,समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राज्यभाषा भी है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रति जागरुकता पैदा करने और हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसे समारोह की भी शुरुआत की गई है। 10 जनवरी 1975 को नागपुर से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है। अब इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप मे भी मनाया जाने लगा है।
हिन्दी भारत की नहीं पूरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र और जनसमूह की भाषा है। 1952 में उपयोग की जाने वाली भाषा के आधार पर यह विश्व में पांचवें स्थान पर थी। 1980 के आसपास वह चीनी और अंग्रेजी के बाद तीसरे स्थान पर आ गई।

1991 में यह पाया गया कि हिन्दी बोलने वालों की संख्या पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषियों की संख्या से अधिक है,जो मध्यम वर्ग के एक विशाल क्षेत्र को अपने में समेटे हुए है। इस मध्यम वर्ग की क्रय-शक्ति पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। आज अपने माल के प्रचार-प्रसार,पैकिंग,गुणवत्ता आदि के लिए हिन्दी को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता है और उनकी यही विवशता आज हिन्दी की शक्ति बन गई है।
1980 और 1990 के दशक में भारत में उदारीकरण,वैश्वीकरण तथा औद्योगीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई। इसके परिणामस्वरूप अनेक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में आईं तो हिन्दी के लिए एक खतरा दिखाई दिया था,क्योंकि वे अपने साथ अंग्रेजी लेकर आई थीं।
मीडिया महारथी रुपर्ट मर्डोक स्टार चैनल लेकर आए। अंग्रेजी में यह चैनल बड़ी धूमधाम से शुरू हुआ था। इसी तर्ज पर सोनी और अन्य दूसरे चैनल भी अंग्रेजी में अपने कार्यक्रम लेकर भारत में आए। मगर इन सबको विवश होकर हिन्दी की ओर मुड़ना पडा,क्योंकि इन्हें अपनी दर्शक संख्या बढ़ानी थी। अपना व्यापार,अपना लाभ बढाना था जो हिन्दी से ही संभव था।

आज टी वी चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिन्दी सबसे अधिक मुनाफे की भाषा है। कुल विज्ञापनों का लगभग 75 प्रतिशत हिन्दी माध्यम में है।
हिन्दी फिल्मों तथा फिल्मी गानों ने भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अपना अहम योगदान दिया है। सन्‌ 1995 के बाद से टी.वी.के चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बढ़ी है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाइट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अंग्रेजी भाषा से किया था उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन करना पड़ा है।
अब स्टार प्लस, जी.टी.वी,जी न्यूज,स्टार न्यूज,डिस्कवरी,नेशनल ज्यॉग्रॉफिक आदि टी.वी.चैनल अपने कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं। आज सभी चैनल तथा फिल्म निर्माता अंग्रेजी क़ार्यक्रमों और फिल्मों को हिन्दी में डब करके प्रस्तुत करने लगे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है जुरासिक पार्क जैसी बेहद लोकप्रिय फिल्म को हिन्दी में डब किया जाना। इसके हिन्दी संस्करण ने सिर्फ भारत में इतने पैसे कमाए जितने अंग्रेजी संस्करण ने पूरे विश्व में नहीं कमाए थे।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। वेब,विज्ञापन,संगीत,सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं है।

विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकडों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध के स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है।

विदेशों से 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ एम'सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं,जिनमें बीबीसी,जर्मनी के डॉयचे वेले,जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा प्रमुख है।
हिन्दी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ और समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न न किए जाने पर भी इसके विकास की गति बहुत तेज है। ध्यान,योग,आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे संबंधित हिन्दी शब्दों का भी विश्व की दूसरी भाषाओं में विलय हो रहा है।
भारतीय संगीत,हस्तकला,भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी। लगभग हर देश में योग,ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं। ऐसी संस्कृति जिसे पाने के लिए हिन्दी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है।

भारतीयों ने अपनी कड़ी मेहनत,प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि से आज विश्व के तमाम देशों की उन्नति में जो सहायता की है उससे प्रभावित होकर सभी यह समझ गए हैं कि भारतीयों से अच्छे संबंध बनाने के लिए हिन्दी सीखना कितना जरूरी है।
आज हिन्दी ने अंग्रेजी का वर्चस्व तोड़ डाला है। करोड़ों की हिन्दी भाषी आबादी कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर रही हैं।

प्रवासी भारतीयों में हजारों लोग हिन्दी के विकास में संलग्न हैं। हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 114 मिलियन डॉलर की एक विशेष राशि अमरीका में हिन्दी,चीनी और अरबी भाषाएं सिखाने के लिए स्वीकृत की है। इससे स्पष्ट होता है कि हिन्दी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है। (समाप्त)

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उत्पत्ति के आधार पर शब्द-भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं- 1. तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य आदि। 2. तद्भव- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे-आग (अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य) आदि। 3. देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि। 4. विदेशी या विदेशज- विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं। जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैंची,अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि। ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है। अंग्रेजी- कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि। फारसी- अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि। अरबी- औलाद,

बहुवचन बनाने के नियम

नियम- (1) अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम अ को एँ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे- एकवचन= बहुवचन आँख= आँखें बहन= बहनें पुस्तक= पुस्तकें सड़क= सड़के गाय= गायें बात= बातें (2) आकारांत पुल्लिंग शब्दों के अंतिम ‘आ’ को ‘ए’ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे- एकवचन=बहुवचन, एकवचन=बहुवचन घोड़ा=घोड़े, कौआ=कौए कुत्ता=कुत्ते, गधा=गधे केला=केले, बेटा=बेटे (3) आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम ‘आ’ के आगे ‘एँ’ लगा देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे- एकवचन=बहुवचन, एकवचन=बहुवचन कन्या=कन्याएँ, अध्यापिका=अध्यापिकाएँ कला=कलाएँ, माता=माताएँ कविता=कविताएँ, लता=लताएँ (4) इकारांत अथवा ईकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में ‘याँ’ लगा देने से और दीर्घ ई को ह्रस्व इ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे- एकवचन=बहुवचन, एकवचन=बहुवचन बुद्धि=बुद्धियाँ, गति=गतियाँ कली=कलियाँ, नीति=नीतियाँ कॉपी=कॉपियाँ, लड़की=लड़कियाँ थाली=थालियाँ, नारी=नारियाँ (5) जिन स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में या ह

शब्दों का लिंग-परिवर्तन

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